Wednesday, December 31, 2014

स्वर्ग और नरक क्या है

स्वर्ग और नरक क्या है ,हम हमेशा सोचते रहते है की आखिर सभी धर्मो ने स्वर्ग और नरक  की बात की पर यह स्वर्ग और नरक आखिरकार है क्या असल में ऐसे स्वर्ग  और नरक की कल्पना मात्र की  लोगो ने पर इस शब्दों को धयान से है पड़ा। असल  में स्वर्ग का अर्थ स्वे घर जनि अपना घर होता है आत्मा का घर निज घर कौन है आत्मा अपने ज्ञान सरूप में यहाँ इस्थित रहती है उसको ही स्वर्ग कहा   है। और एक नरक यानि मन का कल्पना और चिंता में रहना ये नरक है।  संसारी जीवो  का नरक और  और दुःख  है ,यहाँ संसार के सुख उनके लिए स्वर्ग है और दुःख उनके लिए नरक है और मर कर कही भी नरक और स्वर्ग सम्भव  ही नहीं है क्योकि सरीर के बिना दुःख और सुख को भोगा नहीं जा सकता है और गर्भ के बिना सरीर में आना सम्भव नहीं है। और सुख और दुःख चेतना को ही महसूस  जबतक वो चेतना सरीर के साथ सबंद बनती है जब  तक चेतना दिमाग में नहीं आती है तब तक कोई भी सुख दुःख महसूस नहीं करती है। क्योकि सरीर के रहते भी  दुःख और सुख से अलग हो जाते है जब हम नींद में सो जाते है। इस लिए सरीर से चेतना दूर होते ही सुन में चली जाती है जिसमे इसको कोई भी नया ज्ञान मिलना सम्भव ही नहीं  है इस लिए जब सरीर की रहते ही हम इस ते टूट कर ज्ञान रहत हो जाते है तो मरने के बाद ज्ञान सरूप कैसे हो सकते है। इसी कारन स्वर्ग  कल्पना मात्र है जो की पुराणो शास्त्रों में और क़ुरान और बाईबल में भी इसका उलेख मिलता है पर यह सब एक  कोरी कल्पना मात्र है जिसका कोई भी हिस्सा सच नहीं है। इस लिए मरने के बाद आत्मा को फिर से नया सरीर धारण करना पड़ता है। क्योकि ज्ञान केवल नया ये सरीर के मादयम से ही ले सकता है जब तक उस चरम सीमा पर नहीं पुहंच जाता जब इसको पूर्ण ज्ञान हो जाये और दुबारा  सरीर धारण करने की कोई आवश्यकता न रहे।

Tuesday, December 30, 2014

हकलाना कैसे ठीक हो

हकलाना कैसे ठीक हो ,असल में हकलाना एक बहुत ही अनोखी समस्यिा है  हम सही तरीके से बोल नहीं पाते है इस का कारन या तो माँ बाप से भी हो सकता है या फिर बचपन में ज्यादा डांट से भी कुश बच्चो में यह हो सकता है। में  खुद भी इस से बहुत देर तक ग्रसित रहा हु पर में   आपको भी बताता हु की  इसको बहुत हद तकरीबन ठीक कर  लिया है। पहला जो सबसे अछा  तरीका है वो है की हर रोज रीडिंग करना काम से काम आप को एक घंटा हर रोज लाउड बोल बोल कर रीडिंग करना चाइये इस से अप्प कुश ही दिनों में देखेंगे की अप्प की यह रुक रुक कर बोलने  की आदत बिलकुल ठीक हो जाएगी और अप्प में बहुत ही  आतम विश्वास अ जायेगा ,दूर आप को बार बार  मन में यह १० जा २० मिनट तक चिंतन करना होगा की अब मेरी हकलाहट बिलकुल ठीक हो चुकी है इससे भी  फरक पड़ता है क्योकि हमारे मन में भी यह बैठा हुआ है की मुझे यह आदत है इस  हमे अपने मन ले यह चीज को मिटा देना होगा ,में  साल इस से लड़ा हु ,और आप भी इस को प ऊरी तरह ठीक कर सकते है ,तीसरा योग  मदद  है ,पर मेरा सबसे अच्गा सुजाहव है रीडिंग क्योकि यह सबसे अछा तरीका है ,और आप अगर और भी इस बारे में मदद लेना चाहते है तो मुझे कॉल कर सकते है  में आपको बता सकता हु  की तरह इसको काम किया मेने +918054814494 mera no hai

सृष्टि की शुरवात

पहले भी इस बात पर चर्चा कर  चुके है पर अब हम यह जानने कोशीस करेंगे की सृषिट की रचना परमेश्वर कको करनी क्यों  पड़ती है। इस के एक ही कारण है की परमेश्वर  हम सब को ज्ञान के रूप में उन्नत करना चाहता है वो यही चाहता है की हम ज्ञान के  उन्नत हो जाये और अपने घर वापिस चले जाये  जिसको छोड़ कर हम यहाँ माया रुपी संसार में फस गए है। दो तरह की अवस्था है सुन समाद और सहज समाद सुन तब होता है जब सृष्टि नहीं होती है क्योकि उस टाइम पर सब रूहे अपनी आतम अवस्था में पूरी होती है जब कोई आत्मा अपने इस ज्ञान के सरूप से नीचे गिरती है तो सुन में चली  जाती है इसी को त्रेता युग भी कहा गया है यह वह अवस्था है जिसमे सृष्टि नहीं होती।  अब परमात्मा दयालु  है इस कारन हमे फिर से उसी अवस्था  में लेने  के लिए उस  को सृष्टि रचनी पड़ती है। क्योकि बिना सरीर के सुन अवस्था में से ज्ञान मिलना सम्भव ही नहीं इस लिए बार बार इस इसको सरीर धारण  पड़ता है  की अपनी उसी  चरम अवस्था में  पुहंच जाये। इसी लिए ये  माया रुपी संसार उसका एक स्कूल  है जिसमे हम सब पढ़ रहे है। और यही पढ़ाई पढ़ कर हमे उसी की और लोट जाना है। .पर जे सिर्फ ज्ञान से ही सम्भव है बिना ज्ञान के कोई कार्य सम्भव ही नहीं होता है अगर हम संसार की और  भी देखे तो हम देखंगे की यहाँ पर भी कोई काम बिना ज्ञान के सम्भव ही  ज्ञान आत्मा का गुन है। संसार में भी हम  प्राप्ति करते ही रहते है ज्ञान की हम सबको रोज के कामो में कोई नहीं कोई ज्ञान प्राप्त हो ही रहा है। बस हमे यह तय कर  कौनसा ज्ञान हमको चाइये माया रुपी ज्ञान जो संसार  वाला है या की आतम ज्ञान जो यहाँ से  घर में  परवेःस करवाने वाला  है। और इस पर आगे के टॉपिक्स पर बात करते रहेंगे

सृष्टि रचना

सृष्टि रचना एक बहुत ही इंट्रेस्टिंग टॉपिक है। क्योकि हम सभी  में एक इशा  बात को जननने की हम सब किस तरह इस धरती पर आये। आम तोर पर कुश धार्मिक लोग सृष्टि को ६ और कुश किसी देवता से पैदा हुए
 है पर सचाई यह है की इस तरह कोई भी  बता नहीं  पाया है की दुनिया की उत्पति कैसे हुए। असल में यह  सारी बाते ही निराधार है। क्योकि सबसे पहले आकाश तत्व ही होता है जो  क  परमेश्वर  के साथ ही है पर आकाश तत्व में परमेश्वर अपनी इशा शक्ति से हवा तत्व को पैदा करता है हवा में  ही दोनों तत्व आग और  पानी मजुद होता है। हवा का ठंडी होने का नाम पानी है और हवा घर्षण से आग के रूप में पैदा  असल में यह बीज  रूप में सारी सृष्टि ही विकाश का ही परिणाम नाम है असल में धर्म और साइंस ने दोनों ने विकास की ही वयाखया की है। पर धर्म का लक्ष आतम दर्शन है जबकि  माया रुपी संसार की खोज यह साइंस का विषा है।  इस पर्कार दोनों ही इस दुसरे की विपरीत खोज करते है पर यह   सच है की धर्म कभी  साइंस से अलग नहीं है। यह तो दोनों एक दुसरे के समरूपी है। सृष्टि का सारा ज्ञान आत्मा से ही प्रकट हुआ है। आत्मा के बिना कोई भी ज्ञान सम्भव नहीं है। इसी कर्म से फिर परमेश्वर से एक बहुत बड़ी आवाज़ होती है जिसको ओंकार कहा गया है। इसी आवाज़  आगे की सृष्टि विकास करती है जो विनास है वो भी विकास है। जनम और मरण हमारे माने हुए मापदंड है पर असल में सच्चाई यह है की एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तन होता रहता है। अब परमेश्वर को इस संसार को रचने में क्या जरुरत है और वो यह सब क्यों करता है यह एक अलग  की विषा है  

Monday, December 29, 2014

आत्मा क्या है

आत्मा क्या है ,असल में हम लोग सभी इस बारे में बहुत बात करते रहते है की आत्मा क्या है। मगर अभी तक कोई भी इस बारे में सप्स्ष्ट रूप से कोई भी तारक सामने   रख नहीं पाया है पाया है की इस बात को हम मान सके। पर  फिर भी तारक की कसोटी पर परख  करने के बाद हम जान सकते है की अगर हमारे अंदर आत्मन है तभी हम सभी काम ठीक से कर पता है अब हमे इसी बात को देख लेना चाइये की आत्मा के बिना जे सरीर हरकत नहीं कर सकता। मरने के बाद भी हमारे सभी तत्व सामान रूप में सरीर से अलग होते है। मिटटी वही पर रहती है पर वो मिटटी अब बोल नहीं सकती न कुश काम कर सकती है क्योकि जिस वजह से वो जे सब काम कर रही थी उसी का नाम चेतना था और  इसी  से हम सब बोलते और चलते है। इसी  आत्मा से ही हमारे सभी काम पूरे होते है। नहीं तो सरीर की खत्म होने के बाद भी यह तत्व मजूद रहता है क्योकि यह परम तत्व है। जिससे कभी खत्म नहीं किया जा सकता है। आत्मा अगले सरीर की और चल पड़ती है क्योकि ज्ञान इसको सरीर में ही प्रपात हो सकता है कही और से नहीं असल में यही इस  का मूल कारन है की चेतना हमेशा नया सरीर धारण करती रहती है क्योकि इसको हमेशा ही ज्ञान चाहिए। इस बात पर भी  बहुत सी शोद चल रहे है पर साइंस   नहीं जान पायेगी क्योकि उस का विषा केवल बहरमुखी है अंतर मुखी नहीं है।


क्या हम इन्सान है।

क्या हम इन्सान है। और क्या हमको इंसान कहना इन्सनिायत का अपमान नहीं है। यहाँ भी देखो आदमी धर्म  के ऊपर लड़ रहा है। अज्ज के सब से बड़ा यही मुदा देश में बना हुआ है की जनता को आखिर देश में विकास चाहिए या धर्म के नाम पर लड़  ये झगड़ा पर  देश की सरकार इसी तरफ अज्ज लग्गी हुई है की किसी भी तरह देश को  राजनीती कर ली जाये ,असल में अब युवा बर्ग  जागना पड़ेगा और उनको कोई रास्ता चुनना पड़ेगा की वो किस रस्ते पर चलना चाहते है।