सृष्टि रचना एक बहुत ही इंट्रेस्टिंग टॉपिक है। क्योकि हम सभी में एक इशा बात को जननने की हम सब किस तरह इस धरती पर आये। आम तोर पर कुश धार्मिक लोग सृष्टि को ६ और कुश किसी देवता से पैदा हुए
है पर सचाई यह है की इस तरह कोई भी बता नहीं पाया है की दुनिया की उत्पति कैसे हुए। असल में यह सारी बाते ही निराधार है। क्योकि सबसे पहले आकाश तत्व ही होता है जो क परमेश्वर के साथ ही है पर आकाश तत्व में परमेश्वर अपनी इशा शक्ति से हवा तत्व को पैदा करता है हवा में ही दोनों तत्व आग और पानी मजुद होता है। हवा का ठंडी होने का नाम पानी है और हवा घर्षण से आग के रूप में पैदा असल में यह बीज रूप में सारी सृष्टि ही विकाश का ही परिणाम नाम है असल में धर्म और साइंस ने दोनों ने विकास की ही वयाखया की है। पर धर्म का लक्ष आतम दर्शन है जबकि माया रुपी संसार की खोज यह साइंस का विषा है। इस पर्कार दोनों ही इस दुसरे की विपरीत खोज करते है पर यह सच है की धर्म कभी साइंस से अलग नहीं है। यह तो दोनों एक दुसरे के समरूपी है। सृष्टि का सारा ज्ञान आत्मा से ही प्रकट हुआ है। आत्मा के बिना कोई भी ज्ञान सम्भव नहीं है। इसी कर्म से फिर परमेश्वर से एक बहुत बड़ी आवाज़ होती है जिसको ओंकार कहा गया है। इसी आवाज़ आगे की सृष्टि विकास करती है जो विनास है वो भी विकास है। जनम और मरण हमारे माने हुए मापदंड है पर असल में सच्चाई यह है की एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तन होता रहता है। अब परमेश्वर को इस संसार को रचने में क्या जरुरत है और वो यह सब क्यों करता है यह एक अलग की विषा है
है पर सचाई यह है की इस तरह कोई भी बता नहीं पाया है की दुनिया की उत्पति कैसे हुए। असल में यह सारी बाते ही निराधार है। क्योकि सबसे पहले आकाश तत्व ही होता है जो क परमेश्वर के साथ ही है पर आकाश तत्व में परमेश्वर अपनी इशा शक्ति से हवा तत्व को पैदा करता है हवा में ही दोनों तत्व आग और पानी मजुद होता है। हवा का ठंडी होने का नाम पानी है और हवा घर्षण से आग के रूप में पैदा असल में यह बीज रूप में सारी सृष्टि ही विकाश का ही परिणाम नाम है असल में धर्म और साइंस ने दोनों ने विकास की ही वयाखया की है। पर धर्म का लक्ष आतम दर्शन है जबकि माया रुपी संसार की खोज यह साइंस का विषा है। इस पर्कार दोनों ही इस दुसरे की विपरीत खोज करते है पर यह सच है की धर्म कभी साइंस से अलग नहीं है। यह तो दोनों एक दुसरे के समरूपी है। सृष्टि का सारा ज्ञान आत्मा से ही प्रकट हुआ है। आत्मा के बिना कोई भी ज्ञान सम्भव नहीं है। इसी कर्म से फिर परमेश्वर से एक बहुत बड़ी आवाज़ होती है जिसको ओंकार कहा गया है। इसी आवाज़ आगे की सृष्टि विकास करती है जो विनास है वो भी विकास है। जनम और मरण हमारे माने हुए मापदंड है पर असल में सच्चाई यह है की एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तन होता रहता है। अब परमेश्वर को इस संसार को रचने में क्या जरुरत है और वो यह सब क्यों करता है यह एक अलग की विषा है
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