पहले भी इस बात पर चर्चा कर चुके है पर अब हम यह जानने कोशीस करेंगे की सृषिट की रचना परमेश्वर कको करनी क्यों पड़ती है। इस के एक ही कारण है की परमेश्वर हम सब को ज्ञान के रूप में उन्नत करना चाहता है वो यही चाहता है की हम ज्ञान के उन्नत हो जाये और अपने घर वापिस चले जाये जिसको छोड़ कर हम यहाँ माया रुपी संसार में फस गए है। दो तरह की अवस्था है सुन समाद और सहज समाद सुन तब होता है जब सृष्टि नहीं होती है क्योकि उस टाइम पर सब रूहे अपनी आतम अवस्था में पूरी होती है जब कोई आत्मा अपने इस ज्ञान के सरूप से नीचे गिरती है तो सुन में चली जाती है इसी को त्रेता युग भी कहा गया है यह वह अवस्था है जिसमे सृष्टि नहीं होती। अब परमात्मा दयालु है इस कारन हमे फिर से उसी अवस्था में लेने के लिए उस को सृष्टि रचनी पड़ती है। क्योकि बिना सरीर के सुन अवस्था में से ज्ञान मिलना सम्भव ही नहीं इस लिए बार बार इस इसको सरीर धारण पड़ता है की अपनी उसी चरम अवस्था में पुहंच जाये। इसी लिए ये माया रुपी संसार उसका एक स्कूल है जिसमे हम सब पढ़ रहे है। और यही पढ़ाई पढ़ कर हमे उसी की और लोट जाना है। .पर जे सिर्फ ज्ञान से ही सम्भव है बिना ज्ञान के कोई कार्य सम्भव ही नहीं होता है अगर हम संसार की और भी देखे तो हम देखंगे की यहाँ पर भी कोई काम बिना ज्ञान के सम्भव ही ज्ञान आत्मा का गुन है। संसार में भी हम प्राप्ति करते ही रहते है ज्ञान की हम सबको रोज के कामो में कोई नहीं कोई ज्ञान प्राप्त हो ही रहा है। बस हमे यह तय कर कौनसा ज्ञान हमको चाइये माया रुपी ज्ञान जो संसार वाला है या की आतम ज्ञान जो यहाँ से घर में परवेःस करवाने वाला है। और इस पर आगे के टॉपिक्स पर बात करते रहेंगे
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